बचपन ढूँढो, कहाँ गया?

बचपन ढूँढो, कहाँ गया?

आज की इस 😒डिप्रेशन भरी 🌏 दुनिया में, हर कोई अपने बचपन को याद करता है। हर कोई सोचता है कि काश वो बीते पल वापस आ जाएँ। सोने से पहले या अकेलेपन में, हर कोई अपने बचपन को याद करता है। जब हम बच्चे होते हैं, तो किसी बात की चिंता नहीं होती, बस खेलने-कूदने और खाने-पीने में 😀मस्त रहते हैं। तो आइए, आज आपको इस तनाव भरी ज़िंदगी से दूर आपके बचपन की सैर कराते हैं।

Bachpan ke woh khel jo ab nahi khele jaate

 

मामा, मौसी, बुआ के घर जाना

पहले के ज़माने में हम किस तरह 1-1 महीना अपने मामा, मौसी या बुआ के घर बिता आते थे। वहाँ जाकर 😀मस्ती करना, नई-नई चीज़ें खाना, खेलना-कूदना और एक जगह बैठकर बातें करना। लेकिन आज के समय में हम 1 दिन तो दूर की बात, 1 घंटा भी अगर उनके घर ठहर जाएँ, तो😟 बेचैनी होने लगती है।

फ़िल्मी सितारों की छोटी-छोटी फोटो के साथ खेलना😍

किस-किस ने खेला है यह खेल? याद है या भूल गए? जब हम यह खेल खेलते थे, तो न समय देखते थे, न स्थान। 1🪙रुपए लेकर दुकानदार के पास जाना। कितना मज़ा आता था, सच में है ना?

कंचों के साथ खेलना, पकड़म-पकड़ाई, लुका-छिपी😍

ये सबसे ज़्यादा खेले जाने वाले खेल थे। जो सबसे तेज़ दौड़ता था, उसको पकड़ना सच में मुश्किल था। और लुका-छिपी — कई बार तो ऐसी जगह छिप जाते थे कि शाम तक न मिलें। आपके साथ हुआ है ऐसा कभी कि आप ऐसी जगह छिपे हों कि ढूँढ़ने वाले को मिलें ही न हों? कंचों में 10-20 का खेल सच में कितना मज़ेदार था। बस कोई जगह देखी और वहीं गड्डा बनाकर खेलना शुरू। जिसका निशाना सबसे शानदार होता था, उसकी वाह-वाह होती थी।😎

कटी पतंग, लोहा-लकड़, सल्तन-मल्तान😁

ये एक साथ खेले जाने वाले खेल थे। जब शुरू करते थे, तो रात तक खेलते ही रहते थे। मुझे तो अच्छे से याद भी नहीं। क्या आप बता सकते हैं कि किस-किस तरह खेलते थे इनको? ये याद है मुझे कि सल्तन-मल्तान खेल में सबकी बारी आती थी, जिसमें 👰👨शादियाँ कराई जाती थीं। सबको कुछ न कुछ माँगना पड़ता और सबकी अपनी-अपनी विश होती थी।

सावन में झूला डाल लेना😍

सावन का महीना आते ही, सभी झूला डाल लेते थे। सभी बारी-बारी से झूलते थे। कभी-कभी तो कोई इतनी तेज़ झूलने लग जाता था कि दूसरा रोने ही लग जाए। कभी आपने 😢चोट खाई है झूले पर?

माचिस के ताश, टायर की गाड़ी और लकड़ी का फ़ोन😇

किस-किस ने बनाए हैं माचिस के ताश? और जब साइकिल का कोई टायर ख़राब हो जाता, तो उससे हमारी गाड़ी बनाई जाती। लकड़ी के 📱फ़ोन से एक-दूसरे को कॉल करने की एक्टिंग करना, वाह! मानो सच में एक-दूसरे को कॉल कर रहे हों। सच में, ज़िंदगी तो वो ही थी, अब तो बस दिखावा ही रह गया है।

कितना ज़्यादा😞 परिवर्तन हो गया है एक दम से हमारी ज़िंदगी में! छोटे-छोटे बच्चे अब ये खेल खेलने की बजाय, 📱मोबाइल फ़ोन में ही वीडियो गेम्स खेलना पसंद करते हैं। उनकी भी क्या ग़लती, आख़िर उनको ये सब खेल बताए कौन? अब तो हम अपनी मान-मर्यादा सब भूल गए हैं। अगर पास में कोई वरिष्ठ व्यक्ति भी बैठा हो, तो भी हम असामाजिक बातें करने से नहीं झिझकते! सच में, कितने बदल गए हैं हम! 

  

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