दिल की बात, अधूरी रह गई - भाग 2
दिल की बात, अधूरी रह गई - भाग 2 स्कूल पूरा होने के बाद, अभय ने कस्बे के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दाखिला ले लिया। यह एक नई शुरुआत थी, नए दोस्त, नया माहौल, लेकिन एक चीज़ जो नहीं बदली, वह थी पल्लवी की याद। उसके दिल के किसी कोने में पल्लवी की मासूम सूरत और उसकी प्यारी हँसी हमेशा ज़िंदा रहती थी। अभय की क्लास के बहुत से बच्चों ने उसी स्कूल में दाखिला लिया था, जिनमें उसके पुराने दोस्त रिंकू औरअनिल भी थे। हालाँकि उनके सेक्शन अलग-अलग थे, पर उनकी दोस्ती वैसी ही बनी रही।
अभय अक्सर अपने गाँव के उसी दोस्त से पल्लवी का हालचाल पूछता रहता, जो पल्लवी की क्लास में था। "और बता, पल्लवी कैसी है?" "स्कूल जा रही है?" "क्या वह भी मुझे याद करती होगी?" अभय की इस पसंद के बारे में अब तक उसके कुछ ही दोस्तों को पता था, लेकिन धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी। अभय अपने दोस्तों के सामने पल्लवी की तारीफ़ करते हुए नहीं थकता था। उसकी बातों में एक अजीब सी ख़ुशी और उदासी दोनों झलकती थीं। वह कहता, "पल्लवी जैसी लड़की मैंने आज तक नहीं देखी।" उसकी आँखें चमक उठतीं और दोस्त मुस्कुरा देते।उसका ध्यान या तो पढ़ाई में रहता था, या फिर पल्लवी के ख्यालों में। शाम को स्कूल के बाद, वह अपने दोस्तों के साथ पल्लवी के गाँव में खेलने जाता। यह बस एक बहाना था, ताकि वह दूर से ही सही, पल्लवी की एक झलक पा सके। कई बार वह उसे गाँव की गलियों में या घर के बाहर खेलते हुए देख लेता। उस एक झलक से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती।
एक दिन, अभय के गाँव का वह दोस्त, जो पल्लवी की क्लास में था, कहीं से पल्लवी के घर का नंबर ढूँढकर ले आया। उसने अभय को वह नंबर दिया। अभय ने उसे देखकर हँसते हुए कहा, "ओ पागल, ये कैसे ले आया?" लेकिन अंदर ही अंदर वह खुश हो रहा था। मन ही मन उसने सोचा, "क्या फायदा इस नंबर का? मैं तो कभी बात नहीं कर पाऊँगा।" फिर एक शाम, अभय और उसके घर के पास रहने वाला एक दोस्त टहलने के लिए निकले। बातों ही बातों में वे मज़ाक करने लगे, "चल, आज फोन लगाते हैं, देखते हैं कौन बोलेगा।" वे हँस रहे थे, लेकिन किसी ने हिम्मत करके फोन नहीं लगाया। अभय के फोन में पल्लवी के घर का नंबर बस यूँ ही सेव रह गया, एक अधूरी इच्छा की तरह
किसी दिन, अभय को कुछ काम से अपने पुराने हाई स्कूल जाना पड़ा। वह आधे घंटे से ज़्यादा वहाँ रुका और उसने बहुत बार पल्लवी को देखने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं दिखी। लौटते वक़्त उसका चेहरा उदास था। उसे लगा जैसे कुछ अधूरा रह गया हो।
कुछ समय बाद, उसका बचपन का दोस्त शिवा अचानक उसके घर आ गया। दोनों घंटों बातें करते रहे। शिवा के साथ बिताए पल उसे बचपन के दिन याद दिला गए, जब वे गाँव के बेर के पेड़ के पास खेला करते थे। अगले दिन, जब शिवा चला गया, तो अभय को और भी अकेलापन महसूस हुआ।
उसी दिन, अभय को रास्ते में वही दोस्त मिला जो पल्लवी की क्लास में था। उसने अभय को बताया, "मैंने पल्लवी से बोला था कि अभय तेरे बारे में पूछ रहा था।" यह सुनकर अभय आश्चर्यचकित हो गया और थोड़ा खुश भी। उसने मन ही मन सोचा, "चलो, पल्लवी को पता तो लगा।" इस बात की खबर धीरे-धीरे कई बच्चों तक पहुँच चुकी थी, यहाँ तक कि उसके अपने गाँव के बच्चे भी इस बारे में बात करने लगे थे।
(अभय और उसके दोस्त रवि और अनिल, शाम को बातें कर रहे हैं।)
अभय: (मोबाइल में कुछ देखते हुए) यार, आज फिर से मन नहीं लगा।
अनिल: क्यों? क्या हुआ भाई?
( अनिल हँसते हुए अभय की तरफ़ देखकर बोलता है: )
"हल्का-हल्का सुरूर है, इश्क मेरा कसूर है, तेरे ही पीछे पड़ा हूँ, तेरा ही तो फ़ितूर है।"
यह सुनकर अभय मुस्कुरा देता है।
अभय: कुछ नहीं यार। बस, मन नहीं कर रहा आज खेलने का।
रवि: (मुस्कुराते हुए) अरे, मुझे पता है। फिर से वही पल्लवी के ख्याल आए क्या?
अभय: (शर्माते हुए) हाँ, यार उसे भुला नहीं पा रहा।
अनिल: तू भी न! चल छोड़,
अभय: (लम्बी साँस लेते हुए) दिल से तो नहीं। यार, उस दिन जब मैं अपने पुराने स्कूल गया था, मैंने उसे देखने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं दिखी। बस, उसी बात का दुख है।
रीना की एंट्री
एक दिन, अभय अपना होमवर्क नहीं कर पाया था और अगले पीरियड के लिए सवाल भी याद करने थे। उसने अपनी नोटबुक एक पहचान की लड़की, मीनाक्षी को दी। मीनाक्षी भी अभय के साथ दसवीं कक्षा में थी और उसने भी उसी स्कूल में दाखिला लिया था। मीनाक्षी की एक सहेली, रीना भी अभय से बातें करने लगी। जल्दी ही रीना अभय की अच्छी दोस्त बन गई। रीना को पल्लवी के बारे में पहले से कुछ नहीं पता था।
एक खाली पीरियड में, अभय अकेला बैठा था। रीना उसके पास आकर बैठ गई।
रीना: (मुस्कुराते हुए) हाय, कैसे हो? उसे अहसास था कि वह अभय को पसंद करने लगी है, लेकिन अभय के दिल में तो कोई और ही था।
अभय: (चुपचाप देखते हुए) हाय। मैं बढ़िया, तुम बताओ।
रीना: मैं भी ठीक हूँ। अकेले क्यों बैठे हो? तुम्हारी तो इतनी सारी दोस्त हैं।
अभय: (उदासी से) बस ऐसे ही। मन नहीं था किसी के साथ बैठने का।
रीना: (धीमी आवाज़ में) क्या बात है? तुम परेशान लग रहे हो।
अभय: (थोड़ी हिचकिचाहट के साथ) परेशान तो नहीं हूँ, बस कुछ सोच रहा था।
रीना: (उसे देखते हुए) क्या सोच रहे हो? अगर तुम चाहो तो बता सकते हो।
अभय: (उसकी तरफ़ देखकर) तुम... तुम पल्लवी को जानती हो?
(रीना के चेहरे पर उदासी की एक लहर आती है, लेकिन वह उसे छिपा लेती है।)
रीना: (शांत होकर) नहीं, कौन है?
अभय: (आँखों में चमक के साथ) वह एक बहुत ही प्यारी लड़की है। मैं उसे बहुत पसंद करता हूँ। वह मेरे पुराने स्कूल में पढ़ती थी।
(अभय, रीना को पल्लवी के बारे में सारी बातें बताता है, कैसे वह उससे मिला था, कैसे उसे उसकी मुस्कान अच्छी लगती थी। रीना बस उसे सुनती रहती है।)
रीना: (मन में सोचती है) तो इसके दिल में पहले से ही कोई और है।
रीना: (बाहर से मुस्कुराते हुए) वह तो बहुत अच्छी लगती है।
अभय: (गहरी साँस लेते हुए) हाँ, यार। लेकिन मुझे लगता है कि मैं कभी उससे अपनी बात कह नहीं पाऊँगा।
(दोनों चुप हो जाते हैं, )
क्लास का समय हो गया और अभय चला गया। आधी छुट्टी के समय अभय को भूख लगी, लेकिन आज उसके पास पैसे नहीं थे। उसने अपने दोस्त को पैसे देने के लिए कहा, लेकिन उसके पास भी नहीं थे।
(रीना यह बात सुन लेती है और अभय के पास 50 रुपये लेकर आती है।)
रीना: (पैसे देते हुए) यह लो।
अभय: (चौंककर) तुम! तुम्हें कैसे पता?
रीना: (मुस्कुराकर) मैंने सुन लिया था।
(अभय धन्यवाद कहता है और पैसे लेकर चला जाता है।)
अनिल: (हँसते हुए अभय से) ओहो, आज तो भाभी ने पैसे दे दिए!
अभय: (मुस्कुराते हुए) अरे, नहीं यार। हम सिर्फ दोस्त हैं।
अगले दिन सुबह जब अभय रीना से मिला तो उसने पैसे वापस दिए। रीना ने कहा, "अरे, कोई बात नहीं," लेकिन अभय ने पैसे उसे दे दिए।
स्कूल से आकर अभय अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया। जाते हुए वह पल्लवी के बारे में बातें करने लगा। अब तक पल्लवी को भी इस बारे में पता चल चुका था।
(अभय और उसके दोस्त खेलते हुए बातों में लगे होते हैं, तभी एक छोटा बच्चा उनके पास खड़ा होता है।)
अनिल: (अभय को इशारा करते हुए) देख, वो पल्लवी का भाई है।
अभय: (उस बच्चे को देखकर मुस्कुराते हुए) अच्छा!
(अभय, मन ही मन उस बच्चे को देखता है और सोचता है कि काश वह पल्लवी से कभी बात कर पाता। उसकी आँखें नम हो जाती हैं।)
अभय ने अपने दोस्तों से कहा, "अगर मुझे एक वरदान मिले तो मैं सिर्फ पल्लवी को माँगूँगा।" यह बात कहकर उसकी आँखें नम हो गईं। कुछ दिनों बाद अभय के इम्तिहान शुरू हो गए और उसने वहाँ से अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।
उसने अपने दिल की बात कभी पल्लवी से नहीं कही और उसे लगता रहा कि पल्लवी को कुछ नहीं पता है। क्या यह सच था? या पल्लवी भी उसके लिए कुछ महसूस करती थी? यह तो समय ही बताएगा।
यह कहानी का दूसरा हिस्सा है, और अभी कई हिस्से बाकी हैं। इस एकतरफा प्यार की दास्तान को जानने के लिए पढ़ते रहिए...
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Bro 3rd part kab aayga
ReplyDeleteLadke raa moj krdi tne to
ReplyDelete8307722432
3rd part bejea bhai eska
Matlab jo b part aava bejea jrur
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ReplyDelete👍👍👍♥️♥️🥹🥹
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